अपना जायज माग रखना लोकतंत्र में जनताके एक स्व-अधिकार है । पर स्वतंत्र और अधिकार के नाम पर देश हित बिपरित माग ए भी जनताको शोभा नहीं देता हे । हमार मदेश / तराई से भी कोई दल ऐसे ही बात कर रहे है । वो ऐसे क्यूँ कर रहे हे ? ए प्रस्ट हे की उनोने पहलेके संबिधान में मदेशी जनताऒ से अधिक कुरा वाधा किया था पर कोही भी पूरा नहीं किया । वो लोग सत्ता में बैठे पर जनताके घरके दाल रोटी के बारेमे भूल गए । इसीलिए जनताने दोश्रो संबिधान सभाके चुनाव में उन भोट नहीं दिया । उनके अलावा जनताने कांग्रेस और एमालेको चुना ।
अब जनताके नजरमे केहि मधेशबादी दल गिर चुके है इसलिए जनताके नजरमे उठने के लिए उनलोगो ने ए आंदोलन कर रहे हे । पर उनो का कुछ माग जनताके लिए जायज है और कुछ वो लोग राजनीति करनेके लिए उठा रहे है ।
हम मदेशी जनता अपना उचित मागको उचित ढंग से रख सकते है, यसकारण हमें संयमित होना जरुरी है । देश नेपाल हमार है, हम यहांके आदिवासी है । देश बनाना हमार कर्तव्य है ।
कुछ हमार मदेशी भाई बेहेन ए सोच रहे है की मधेशको दो टुकड़ा किया पर आपका ए सोचना बिलकुल गलत है क्यों की ए देश मात्र संघीयतामे गया है । और यहाँका संबिधान कोही और देशसे बिलकुल भिन्न है । अमेरिका का संघियता टुकड़ा टुकड़ा राज्यको जोड़ने के लिए हुवा था और भारत का भी अंग्रेजको लखेटनेके लिए हुवा था पर नेपाल का संघियता देशमे सद्वाव और राष्ट्रीय अखंडता बचेरखने के लिए हुआ हे । इसलिए नेपालके संघीयतामे राज्य नहीं प्रदेश कहना चाहिए ।
हम मधेशी जनता ने ए भी देखना पड़ेगाकी पहाड़को भी बिभिन्न प्रदेश में बाड़ लिया है । प्रदेश की माग के बदले हम मधेशी जनताके माग ऐसा होना चाहिए :
- आधारभूत आवश्यकताके परिपूर्ति
- मधेशिका अधिकारोंका सुनिश्चितता
- शिक्षा निशुल्क और रोजगारिका अवसर
- स्वास्थ्य सेवाके सुलभता
( जय नेपाल जय मधेश )